भारत ने दुनिया के सामने एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। बनारस रेल इंजन कारखाना (बीएलडब्ल्यू) में देश का पहला सोलर पैनल सीधे रेलवे ट्रैक के बीच स्थापित किया गया है। इस पैनल की खासियत यह है कि यह हर दिन करीब 67 यूनिट बिजली का उत्पादन करेगा। स्वतंत्रता दिवस पर इसका शुभारंभ महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह ने फीता काटकर किया। रेलवे का यह प्रयोग भविष्य में पूरे नेटवर्क को हरी ऊर्जा (Green Energy) की तरफ ले जाने का संकेत देता है।

रेलवे ट्रैक के बीच क्यों खास है यह सोलर पैनल
अभी तक सोलर पैनल छतों, इमारतों या खाली जमीन पर लगाए जाते थे, लेकिन पहली बार इन्हें सक्रिय रेलवे ट्रैक के बीच लगाया गया है। 70 मीटर लंबे ट्रैक पर 28 पैनल लगाए गए हैं, जिनकी क्षमता 15 किलोवाट पीक है। इन पैनलों को एपॉक्सी एडहेसिव से कंक्रीट स्लीपर पर मजबूती से चिपकाया गया है, ताकि ट्रेन की कंपन से भी यह हिल न सकें। इतना ही नहीं, पैनलों को जरूरत पड़ने पर आसानी से हटाया भी जा सकता है। सफाई और मेंटेनेंस के लिए खास तकनीक अपनाई गई है और रबर माउंटिंग पैड्स का उपयोग कंपन कम करने के लिए किया गया है।
भारतीय रेलवे का हरित ऊर्जा की ओर बड़ा कदम
भारतीय रेलवे ने वर्ष 2030 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है। बरेका का यह प्रयोग उसी दिशा में एक अहम कदम है। महाप्रबंधक ने इसे सौर ऊर्जा के उपयोग का नया आयाम बताया और कहा कि भविष्य में यह मॉडल देशभर के रेलवे यार्ड और लाइनों में अपनाया जा सकता है। भारत के पास 1.2 लाख किलोमीटर लंबा रेलवे नेटवर्क है और यदि इस तकनीक को व्यापक स्तर पर लागू किया गया तो ऊर्जा संकट काफी हद तक कम हो जाएगा। साथ ही डीजल और पारंपरिक बिजली पर निर्भरता घटेगी।
भविष्य की झलक
बरेका का यह इनोवेशन न केवल रेलवे बल्कि देश के ऊर्जा क्षेत्र के लिए भी प्रेरणादायक है। यह पायलट प्रोजेक्ट रूफटॉप सोलर पावर प्लांट्स के साथ मिलकर और ज्यादा बिजली उत्पादन करेगा। भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए ऐसी तकनीकें आने वाले समय में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। इस कदम से यह भी साबित होता है कि भारत स्वदेशी तकनीक और हरित ऊर्जा दोनों में तेजी से आत्मनिर्भर बन रहा है।
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