200kW से बड़े सोलर इन्वर्टर्स को मिली राहत! अब 2026 तक BIS सर्टिफिकेशन की झंझट खत्म

Durgesh Paptwan
Durgesh Paptwan | August 12, 2025

भारत में सोलर एनर्जी सेक्टर के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने 200 किलोवॉट से अधिक क्षमता वाले सोलर इन्वर्टर्स के BIS सर्टिफिकेशन की अनिवार्यता की समय सीमा जून 2026 तक बढ़ा दी है। मंत्रालय ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि देश में अभी भी हाई-कैपेसिटी इन्वर्टर्स के लिए पर्याप्त मान्यता प्राप्त टेस्टिंग लैब्स उपलब्ध नहीं हैं। इस फैसले से बड़े पैमाने पर सोलर उपकरण बनाने वाली कंपनियों को एक बड़ी राहत मिली है।

BIS Hassle Ends for 200kW plus Inverters

सेल्फ-सर्टिफिकेशन से होगा काम, लेकिन क्वालिटी पर समझौता नहीं

नए नोटिफिकेशन के मुताबिक, अब 200kW से अधिक क्षमता वाले SPV (Solar Photovoltaic) इन्वर्टर्स को 30 जून 2026 या अगली अधिसूचना तक BIS सर्टिफिकेशन के बजाय सेल्फ-सर्टिफिकेशन के आधार पर काम करने की अनुमति होगी। हालांकि, क्वालिटी के साथ समझौता न हो, इसके लिए MNRE ने सख्त शर्तें रखी हैं।

निर्माताओं के पास मान्य IEC (International Electrotechnical Commission) सर्टिफिकेट होना जरूरी है, जो भारतीय मानकों के अनुरूप हों। उदाहरण के लिए, Item No. 4 के लिए IS 16221 (Part 2): 2015 / IEC 62109-2:2011 और IS/IEC 61683:1999, जबकि Item No. 5 के लिए IS 16221 (Part 2): 2015 / IEC 62109-2:2011, IS 16169:2019 / IEC 62116:2014 और IS 17980:2022 / IEC 62891:2020 का पालन अनिवार्य है। सभी टेस्ट रिपोर्ट्स मान्यता प्राप्त लैब्स से आनी चाहिए ताकि पारदर्शिता और ट्रेसबिलिटी बनी रहे।

उद्योग जगत को मिली बड़ी राहत

यह फैसला Solar Systems, Devices and Components Goods Order, 2025 के तहत लिया गया है, जो जनवरी 2025 में अधिसूचित हुआ था। पहले नियम के अनुसार, नोटिफिकेशन के 180 दिनों के भीतर कंप्लायंस जरूरी था। लेकिन उद्योग जगत की दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने इसे टाल दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम एक संतुलित रणनीति है, जिससे निर्माता अपने प्रोडक्शन और सप्लाई चेन को व्यवस्थित कर सकेंगे और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ पाएंगे। खासतौर पर बड़े पैमाने पर सोलर प्रोजेक्ट्स लगाने वाले डेवलपर्स और इन्वर्टर मैन्युफैक्चरर्स के लिए यह फैसला एक ब्रेकथ्रू साबित हो सकता है।

सरकार का यह कदम साफ तौर पर यह दिखाता है कि नियम और गुणवत्ता दोनों को साथ लेकर चलने की कोशिश हो रही है, ताकि भारत की सोलर इंडस्ट्री ग्लोबल लेवल पर प्रतिस्पर्धी बनी रहे और भविष्य में कोई तकनीकी कमी न रह जाए।

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